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गायत्री मंत्र

 

 गायत्री मंत्र 


 आपका प्रश्न  समुचित  एवं समीचीन है  कि गायत्री मंत्र को सार्वजानिक क्यों नहीं किया गया I ,इसे कुछ ही  लोगों तक सीमित क्यों रखा गया ? यह प्रश्न  पहली बार नहीं पूछा  गया  है , जब  याग्वल्क्य का उपनयन संस्कार  5 वर्ष कि अवस्था में होने जा रहा था  तब उनके द्वारा भी यही प्रश्न  अपने गुरु से पूछा गया था  I 

याज्ञवल्क्य  को यह निर्देश  दिया गया था  कि इस मन्त्र को  जोर से न बोले अपितु इसका मन ही मन स्मरण करें .इस प्रकार मन्त्र उनके कान  में फूंक दिया गया था I  गुरु ने निर्देश दिए ,  हे! पुत्र  सुनो :- ध्यायेत मनसा मन्त्रं  जिह्वाश्ठो  न विचारयेत ; न कम्पयेत  शिरों ग्रीवा ; दंता: नैव च प्रकाश्येत I अर्थात इस मन्त्र को जपने की पहली शर्त यह है कि मन्त्र का मनन किया जाय , मनन करते समय जिह्वा भी न हिलने पाए,, शिर व ग्रीवा अविचल  रहे , दन्त प्रदर्शित न होने पायें | . गुरु द्वारा यह भी बताया गया  कि यह मंत्र स्वरक्ष्याकरण मंत्र है  इस मन्त्र का दीर्घ स्वर से  उच्चारण  करना  सवर्था वर्जित है |.याग्यवलक्य  को यह बात विरोधाभाषी  लगी .   उन्होंने  गुरु जी से पूछा "गायत्री यो सर्व  भूत हिते रत: कथय मे गुरु: किमर्थ कम  अति गुह्यं इयम गायत्री ? : अर्थात जो गायत्री सभी प्राणियों की स्वरक्ष्या में समर्थ हें सभी  के लिए हितकर हें  वह इतनी गोपनीय क्यों है ? गुरु ने  उत्तर दिया " यक्ष्य रक्ष पिसाचास्च   सिद्ध विद्याधरा गणा , यस्मात् प्रभावं ग्रहणन्तु   तस्मात् गुह्यन्तु कारणात् | तपस्या में बाधा उत्पन्न करने वाली   शक्तियाँ  अर्थात यक्ष गन्धर्व  व पिसाच आदि बिघ्नकारी   शक्तियों  को इस मन्त्र का ज्ञान हो  जाय तो वे आपकी साधना को बिफल करने में  समर्थ  हो जायेंगे  |

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