किसान आन्दोलन दिनांक 15--10 -- 20 21 दशहरे का शुभ दिन | सिन्धु बॉर्डर पर जमघट लगाए पगड़ीधारी किसानों ने एक दलित सिख युवक की तालिबानी स्टाइल में क्रूरता पूर्वक क़त्ल कर के अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया | समाज मूक दर्शक बना रहा | सरकार भी मूक थी | क़त्ल क्यों हुआ ,! उत्तर रटा रटाया वही जो तालिबानी बताते आये हें ,"धार्मिक किताब की बेहुर्मती धार्मिक किताबों के सामने आदमी कितना तुच्छ जीव है | इससे तो यही लगता है कि आदमी का जन्म धार्मिक किताबों के लिए हुआ है ,धार्मिक किताबें आदमी के लिए नहीं है | यह दंगा भड़काने,प्रतिशोध चुकता करने का एक कुत्सित बहाना नहीं तो और क्या है ? किसान आन्दोलन के समर्थक बड़े बड़े बुद्धिजीवी मानवाधिकारों के पुरोधा इस आतंकी बारदात पर कुछ न बोल सके | मारने वाले भी सिख थे, मरने वाला भी सिख था |अंतर यह था कि मारने वाले उच्च जाति के हथियार वद्ध सिख थे और मरने वाला निम्न जाति का निहत्था और गरीब सिख था | कहते है कि गुरु गोविन्द सिंह जी अपने पास में दो तलवार रखा करते थे