Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2021

हिंदू असहिष्णुता का प्रश्न |

                                                                     हिंदू असहिष्णुता का प्रश्न                            आपने  पूछा  ---- बाम पंथियों एवं मुसलमानों द्वारा  हिन्दुओं  पर बढती  असहिष्णुता का आरोप  कहाँ तक सही है ?       वास्तविकता यह है  कि हिन्दू मौलिक रूप से कभी भी असहिष्णु  नही रहा है | यदि समाज के किसी धड़े या कुनवे में असहिष्णुता परिलक्षित  हो रही है तो वह तात्कालिक  प्रतिक्रिया स्वरुप है |  यह हिंदू संस्कृति का  स्थायी भाव नहीं है |   जो व्यक्ति या बर्ग विशेष असहिष्णुता को प्रदर्शित कर रहा है ,  वह किसी न किसी रूप में वाम पंथियों व मुसलमानों द्वारा पीड़ित व प्रताड़ित  रहा हो |    यदि हम  प्रकारान्तर से  हिंदू  प्रबृत्ति  एवं  प्रकृति  का विशलेषण करें तो पायंगे कि सर्व धर्म  समभाव  एवं सर्व समावेशी मूल्यों व   उदात्त जन कल्याण की  भावनाओं से  ओत-प्रोत ,  यदि  कोई  धर्म है तो वह हिंदू धर्म ही है |           सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की अवधारणा हो या सर्व खल्वं इदम् ब्रह्मंम्  का महावाक्य  ये मात्र हिन्दुओं के लिए नहीं है  ये समस्त मानव जाति एवं समस्त जीव
                                                                                      किसान आन्दोलन   आपने पूछा बर्तमान किसान आन्दोलन को आप कैसे देखते है ?    किसी व्यक्ति विशेष का दृष्टिकोण  महत्वपूर्ण  नहीं होता हें | महत्व इस बात का हें कि इतिहास इस आन्दोलन को कैसे देखेगा ?   किसानों कि अपनी मागें जायज ठहराई  जा सकती हें  और स्वाभाविक भी हें |  परन्तु इतिहास यदि सही हाथो से लिखा गया तो  इस आन्दोलन को द्रोपदी के चीर हरण या सीता हरण के रूप में ब्य्ख्यायित करेगा || क्योकि 26 जनवरी २०२1 को किसानों द्वारा लाल कीले पर  किया गया ताण्डव नृत्य नितान्त  अशोभनीय  व रुदन के योग्य था | लाल कीले की प्राचीर पर लहराने वाला तिरंगा  जो भारत के गौरव का प्रतीक था पद दलित हुआ ,अपमानित हुआ |यह कार्य उन पराई विद्या के बैलो द्वारा किया गया जो बीरों की खाल ओढ़े हुए थे ,जो जय जवान जय किसान  का नारा देते नहीं थक रहे थे |सच पूछो  तो उस दिन हास्य में हा हा  कार मचा हुआ था | देश का जवान जो मात्रभूमि एवं तिरंगे के लिए जन देता है  |  भूख, प्यास ,धन वैभव घर  परिवार सब कुछ छोड़ कर भी देश व तिरंगे की आबरू बचाता है उसके

गायत्री मंत्र

    गायत्री मंत्र   आपका प्रश्न  समुचित  एवं समीचीन है  कि गायत्री मंत्र को सार्वजानिक क्यों नहीं किया गया I ,इसे कुछ ही  लोगों तक सीमित क्यों रखा गया ? यह प्रश्न  पहली बार नहीं पूछा  गया  है , जब  याग्वल्क्य का उपनयन संस्कार  5 वर्ष कि अवस्था में होने जा रहा था  तब उनके द्वारा भी यही प्रश्न  अपने गुरु से पूछा गया था  I  याज्ञवल्क्य  को यह निर्देश  दिया गया था  कि इस मन्त्र को  जोर से न बोले अपितु इसका मन ही मन स्मरण करें .इस प्रकार मन्त्र उनके कान  में फूंक दिया गया था I  गुरु ने निर्देश दिए ,  हे! पुत्र  सुनो :- ध्यायेत मनसा मन्त्रं  जिह्वाश्ठो  न विचारयेत ; न कम्पयेत  शिरों ग्रीवा ; दंता: नैव च प्रकाश्येत I अर्थात इस मन्त्र को जपने की पहली शर्त यह है कि मन्त्र का मनन किया जाय , मनन करते समय जिह्वा भी न हिलने पाए,, शिर व ग्रीवा अविचल  रहे , दन्त प्रदर्शित न होने पायें | . गुरु द्वारा यह भी बताया गया  कि यह मंत्र स्वरक्ष्याकरण मंत्र है  इस मन्त्र का दीर्घ स्वर से  उच्चारण  करना  सवर्था वर्जित है |.याग्यवलक्य  को यह बात विरोधाभाषी  लगी .   उन्होंने  गुरु जी से पूछा "गायत्री यो सर्