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असहाय हिंदुत्व

                                                                                                         असहाय हिंदुत्व                  हिंदू और हिंदुत्व  की मनमानी परिभाषायें गढ़ी  जा रही है | स्वदेश मे ही नहीं विदेशों  में भी  हिंदू और                हिंदुत्व को पारिभाषित किया जा रहा है | हिन्दीभाषी भले ही इस परिभाषा से सहमत न हों परन्तु मदरसा एवं           मिशनरी शिक्षा वाले इस  बात पर सहमत है कि हिंदू बुरा नहीं है पर हिंदुत्व बुरा है | मोहतरम  सलमान  खुर्शीद       सहित कांग्रेस  के अनेक नेता  हिंदुत्व को  इतना बुरा समझते है कि वे  ISIS ,बोकोहरम और यहाँ तक कि                तालिबान से भी तुलना करने में नहीं हिचकते हैं |   सवाल यह है कि इस परिभाषा को गड़ने  का श्रोत क्या है ?                 हिंदुत्व  एक युग्मज शब्द है जो हिंदू +तत्व से मिलकर बनता है | जिसका शाब्दिक अर्थ होता है हिंदू                     मान्यताओं का तत्व ,अथवा सार  या सारतत्व |  जिससे यह स्पस्ट हो जाता है कि  यदि हिंदुत्व बुरा है तो हिंदू भी      बुरा है |यदि हिंदू अच्छा है तो हिंदुत्व के बुरा होने का  सवाल ही नहीं 
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किसान आन्दोलन

     किसान आन्दोलन                                  दिनांक 15--10 -- 20 21 दशहरे का शुभ दिन |  सिन्धु बॉर्डर पर जमघट लगाए पगड़ीधारी किसानों      ने  एक दलित   सिख युवक   की तालिबानी स्टाइल  में  क्रूरता  पूर्वक  क़त्ल कर के अपने इरादों को स्पष्ट    कर दिया  |     समाज मूक दर्शक बना रहा | सरकार भी  मूक थी |  क़त्ल क्यों हुआ ,! उत्तर  रटा रटाया     वही  जो तालिबानी  बताते  आये हें ,"धार्मिक किताब की बेहुर्मती धार्मिक किताबों के सामने आदमी     कितना तुच्छ जीव है  |  इससे तो यही लगता है कि  आदमी का जन्म धार्मिक किताबों के लिए हुआ है      ,धार्मिक किताबें आदमी के लिए नहीं है  | यह दंगा भड़काने,प्रतिशोध चुकता करने का एक  कुत्सित बहाना   नहीं तो और क्या है ?  किसान आन्दोलन के समर्थक बड़े बड़े बुद्धिजीवी मानवाधिकारों के पुरोधा इस आतंकी      बारदात  पर कुछ न बोल सके |  मारने वाले भी सिख थे, मरने वाला भी सिख था |अंतर यह था कि मारने  वाले      उच्च जाति के हथियार वद्ध सिख थे और  मरने वाला  निम्न जाति का  निहत्था और गरीब सिख था | कहते है     कि गुरु गोविन्द सिंह जी अपने पास में दो तलवार रखा करते थे
Dismentaling Globle Hinduism  हाँ  मैं एक हिन्दू हूँ |   मुझे  अपने हिंदू होने पर  उतना ही गर्व है जितना आपको अपने  मुस्लिम ,  क्रिस्चियन ,या मार्क्ससिस्ट होने पर होता है |  आपके पास यदि वैश्विक  हिंदुत्व (GLOBLE HINDUTVA) को नष्ट करने  का अधिकार हें  तो हमारे पास  हिंदुत्व को बचाने का अधिकार तो होना ही चाहिये  ग्लोबल हिंदुत्व को इसलिए नष्ट कर दिया जाना चाहिये  क्योकि वह उन सभी धर्मो का आदर करता है  जो हिन्दुओ  से भी द्वेष एवं घृणा करते है | सर्व धर्म समभाव  की अवधारणा, हिंदू द्रोही मानसिकता के गले से नीचे उतरे भी कैसे ?  हिंदुत्व को इसलिये  नष्ट कर दिया जाना चाहिये क्योंकि वह इस्लाम व क्रिश्चियनिटी  की तरह वैश्विक  धर्म परिवर्तन में लिप्त नहीं है |  क्योकि वह इस्लाम तथा कम्युनिस्टों की तरह ,जो  इनके वि चारों से असहमत हों , उनके समूल विनाश [Totle Anihilation] की अवधारणा को अस्वीकार करता है | क्योंकि  वह मूर्ति पूजक है , सर्वे भवन्तु  सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया " कि अवधारणा का पोषक है |     वह इस्लाम की तरह यह भी नहीं कहता है कि   यदि आप   मेरे मुहम्मद या   कुरान को नही   मानते हो
                                                                                                              वेदों की अपौरूषेयता :-                                    आपने पूछा  वेदों को अपौरूषेय क्यों कहा जाता है ?   वेद का तात्पर्य ज्ञान से है जो विद्  धातु से बना है | अत :वेद का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान | वेदों को सृष्टि का प्रथम ज्ञान माना जाता है | इसलिए इन्हें आदि ग्रन्थ भी कहा जाता है | आदि ग्रन्थ में ही आदि ज्ञान संभव है |  रामायण आदि ग्रंस्थ  नहीं है , महाभारत भी नहीं है | बाइबल ,  कुरान आदि तो हो ही नहीं सकते हें क्योकि इनके आने से पहले संसार में बहु आयामी ज्ञान उपलब्ध था |           सृष्टि का आदि ज्ञान देने वाला सामान्य  व्यक्ति नहीं हो सकता है |  निश्चित  ही वह ईश्वरीय गुणों से संपन्न होगा | वह ईश्वर  हो या ना हो सामान्य व्यक्ति से  इतर  कोइ तो था | यदि नहीं था तो वेद आये कहाँ से ?  इस बिस्तृत साहित्य का रचियता कौन था  |?  वेद कल्पना में तो नहीं, वे तो यथार्थ के धरातल पर है |   वेदों के रचियता का कहीं  कोई उल्लेख नहीं मिलता है |जहाँ भारतीय पौराणिक ग्रन्थ ऋग वेद का रचना काल ईस

हिंदू असहिष्णुता का प्रश्न |

                                                                     हिंदू असहिष्णुता का प्रश्न                            आपने  पूछा  ---- बाम पंथियों एवं मुसलमानों द्वारा  हिन्दुओं  पर बढती  असहिष्णुता का आरोप  कहाँ तक सही है ?       वास्तविकता यह है  कि हिन्दू मौलिक रूप से कभी भी असहिष्णु  नही रहा है | यदि समाज के किसी धड़े या कुनवे में असहिष्णुता परिलक्षित  हो रही है तो वह तात्कालिक  प्रतिक्रिया स्वरुप है |  यह हिंदू संस्कृति का  स्थायी भाव नहीं है |   जो व्यक्ति या बर्ग विशेष असहिष्णुता को प्रदर्शित कर रहा है ,  वह किसी न किसी रूप में वाम पंथियों व मुसलमानों द्वारा पीड़ित व प्रताड़ित  रहा हो |    यदि हम  प्रकारान्तर से  हिंदू  प्रबृत्ति  एवं  प्रकृति  का विशलेषण करें तो पायंगे कि सर्व धर्म  समभाव  एवं सर्व समावेशी मूल्यों व   उदात्त जन कल्याण की  भावनाओं से  ओत-प्रोत ,  यदि  कोई  धर्म है तो वह हिंदू धर्म ही है |           सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की अवधारणा हो या सर्व खल्वं इदम् ब्रह्मंम्  का महावाक्य  ये मात्र हिन्दुओं के लिए नहीं है  ये समस्त मानव जाति एवं समस्त जीव
                                                                                      किसान आन्दोलन   आपने पूछा बर्तमान किसान आन्दोलन को आप कैसे देखते है ?    किसी व्यक्ति विशेष का दृष्टिकोण  महत्वपूर्ण  नहीं होता हें | महत्व इस बात का हें कि इतिहास इस आन्दोलन को कैसे देखेगा ?   किसानों कि अपनी मागें जायज ठहराई  जा सकती हें  और स्वाभाविक भी हें |  परन्तु इतिहास यदि सही हाथो से लिखा गया तो  इस आन्दोलन को द्रोपदी के चीर हरण या सीता हरण के रूप में ब्य्ख्यायित करेगा || क्योकि 26 जनवरी २०२1 को किसानों द्वारा लाल कीले पर  किया गया ताण्डव नृत्य नितान्त  अशोभनीय  व रुदन के योग्य था | लाल कीले की प्राचीर पर लहराने वाला तिरंगा  जो भारत के गौरव का प्रतीक था पद दलित हुआ ,अपमानित हुआ |यह कार्य उन पराई विद्या के बैलो द्वारा किया गया जो बीरों की खाल ओढ़े हुए थे ,जो जय जवान जय किसान  का नारा देते नहीं थक रहे थे |सच पूछो  तो उस दिन हास्य में हा हा  कार मचा हुआ था | देश का जवान जो मात्रभूमि एवं तिरंगे के लिए जन देता है  |  भूख, प्यास ,धन वैभव घर  परिवार सब कुछ छोड़ कर भी देश व तिरंगे की आबरू बचाता है उसके

गायत्री मंत्र

    गायत्री मंत्र   आपका प्रश्न  समुचित  एवं समीचीन है  कि गायत्री मंत्र को सार्वजानिक क्यों नहीं किया गया I ,इसे कुछ ही  लोगों तक सीमित क्यों रखा गया ? यह प्रश्न  पहली बार नहीं पूछा  गया  है , जब  याग्वल्क्य का उपनयन संस्कार  5 वर्ष कि अवस्था में होने जा रहा था  तब उनके द्वारा भी यही प्रश्न  अपने गुरु से पूछा गया था  I  याज्ञवल्क्य  को यह निर्देश  दिया गया था  कि इस मन्त्र को  जोर से न बोले अपितु इसका मन ही मन स्मरण करें .इस प्रकार मन्त्र उनके कान  में फूंक दिया गया था I  गुरु ने निर्देश दिए ,  हे! पुत्र  सुनो :- ध्यायेत मनसा मन्त्रं  जिह्वाश्ठो  न विचारयेत ; न कम्पयेत  शिरों ग्रीवा ; दंता: नैव च प्रकाश्येत I अर्थात इस मन्त्र को जपने की पहली शर्त यह है कि मन्त्र का मनन किया जाय , मनन करते समय जिह्वा भी न हिलने पाए,, शिर व ग्रीवा अविचल  रहे , दन्त प्रदर्शित न होने पायें | . गुरु द्वारा यह भी बताया गया  कि यह मंत्र स्वरक्ष्याकरण मंत्र है  इस मन्त्र का दीर्घ स्वर से  उच्चारण  करना  सवर्था वर्जित है |.याग्यवलक्य  को यह बात विरोधाभाषी  लगी .   उन्होंने  गुरु जी से पूछा "गायत्री यो सर्